सेवा से ज़िंदगी और ईश्वर की एकसाथ साधना हो

 

सेवा गुरुवार 2023 / 06 अप्रेल / संदेश  

सेवा से ज़िंदगी और ईश्वर की एकसाथ साधना हो

फादर डॉ. एम. डी. थॉमस 

निदेशक, इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली

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06 अप्रेल गुरुवार 2023 को ईसाई परंपरा में दुनिया भर ‘सेवा गुरुवार’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन ईसा ने अपने चेलों के सामने घुटने-टेक कर उनके पैर धोकर अपनी और सेवा की ‘गुरुता’ की चरम मिसाल पेश की थी। यह दिन ‘पवित्र सफ्ताह’ के भीतर आता है, जो कि ईसा की इस दुनिया की ज़िंदगी की आखिरी घड़ियों की सालाना याद में मनाया जाता है। 

बाइबिल की किताब योहन के अनुसार सुसमाचार (13.1-13) में ईसा द्वारा अपने चेलों के पैर धोने का बयान मिलता है। प्यार से प्रेरित ऐसी सेवा की यह मिसाल दुनिया में बेमिसाल है, न पहले रहा, न बाद में। अपने चेलों के पैर धोने तक की सेवा प्यार की असली निशानी है, यही ईसा के इस इशारे का मकसद रहा। फिर ईसा ने कहा, ‘‘यदि मैं ने, तुम्हारे गुरु और प्रभु होकर भी, तुम्हारे पैर धोये हैं तो तुम्हें भी एक दूसरे के पैर धोने चाहिए’’। मतलब है, सेवादार होना ही शिष्य की असली औकात है।

बाइबिल की किताब मारकुस के अनुसार सुसमाचार (10.42-45) में ईसा ने कहा, ‘‘दुनिया में राजा अपनी प्रजा पर हुक्म चलाता और उससे सेवा लेता है। लेकिन, मसीहा सेवा कराने नहीं, सेवा करने और इन्सानियत की गरिमा की रक्षा के लिए अपनी जान तक न्यौच्छावर करने आया है’’। मतलब है, मसीही नज़रिये में दुनियादारी और खुदाई आपस में एकदम से विरोध का फर्क रखते हैं। साफ है, औरों की सेवा करना ही ज़िंदगी का असली मकसद है।

बाइबिल की किताब मत्ती के अनुसार सुसमाचार (23.11-12) में ईसा का कहना है, ‘‘तुम में से जो सबसे बड़ा है वह सेवक-जैसा बने। यह इसलिए है कि जो अपने आप को छोटा मानता है, वह बड़ा बनाया जायेगा। जो अपने आप को बड़ा मानता है, वह छोटा बनाया जायेगा’’। विनम्रता सेवा की पहचान है। बगैर विनम्रता के, असली सेवा मुमकिन नहीं है। सेवा औरों को इज़्ज़त देने का तरीका है। सेवा से आपसी प्यार व सम्मान भी बढ़ता है। सेवा ही बड़प्पन की निशानी है।

बाइबिल की किताब मत्ती के अनुसार सुसमाचार (5.14-15) में ईसा ने अपने पर्वत-प्रवचन में कहा, ‘‘आप दुनिया की रौशनी हैं। आपके सेवा-कार्य सबके सामने चमकते रहे, जिससे पिता ईश्वर की महिमा हो। साथ ही, आप दुनिया का नमक हैं।’’ सेवा से आपसी रिश्ता जायकेदार बने, यही कायदा है। सेवा के ज़रिये रौशनी व नमक का किरदार निभाने से सामाजिक जीवन भरा-पूरा और रसमय बने, यही ईसा के इशारे की दिशा है।

बाइबिल की किताब मारकुस के अनुसार सुसमाचार (9.41) में ईसा ने कहा, ‘‘यदि तुम किसी को एक गिलास भर पानी भी दोगे, तो तुम उसके लिए अपने पुरस्कार से वंचित नहीं रहोगे’’। सेवा कितनी बड़ी है, यह नहीं, सेवा में मौज़ूद भाव कितना सच्चा है, यही पुरस्कार का मापदण्ड है। सेवा में देने का भाव है। सेवा में परिमाण के बजाय गुण को तौला जाता है। कुछ भी वापस पाने की इच्छा लिए बगैर सेवा की जाय, यही सेवा की तहज़ीब है।

बाइबिल की किताब लूकस के अनुसार सुसमाचार (6.38) में ईसा का कहना है, ‘‘दिया करो, तुम्हें भी दिया जायेगा। लोग पूरा नाप, दबा-दबाकर और हिला-हिलाकर और उभरता हुआ तुम्हारी गोद में डालेंगे, क्योंकि जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिए भी नापा जाएगा’’। मतलब है, देनेवाले को मिलता है, अपनी उम्मीद से कहीं बहुत ज्यादा। जी-भर के सेवा की जाय, सेवा ही सेवा से अपनी तबीयत खुश हो जायेगी।

बाइबिल की किताब रोमियों के नाम पौलुस के पत्र में लिखा है, ‘‘हर एक दूसरे को अपने से श्रेष्ठ माने’’। यह बात बढ़िया सेवा के लिए प्रेरणा देने वाली है। दूसरे को सेवा के लायक समझने के लिए यह ज़रूरी है कि उसे अपने से बढ़कर​ मान-सम्मान दिया जाय। जब हर इन्सान अपने में दूसरे को बड़ा मानने का भाव जगायेगा, सेवा का माहौल सहज रूप से बन जायेगा। इस प्रकार, इन्सानी समाज खुदाई करिश्मे से भर जायेगा और असल में जीने लायक बन जायेगा।   

बाइबिल की किताब मत्ती के अनुसार सुसमाचार (7.12) में ईसा ने कहा, ‘‘दूसरों से तुम जैसा व्यवहार चाहते हो, उनके साथ तुम भी वैसा ही किया करो’’। दूसरों से उम्मीदें रखने के साथ-साथ उनकी उम्मीदों पर खरे उतरना भी ज़रूरी है। दूसरे अपनी सेवा करे, यह हर किसी की चाह है। ठीक उसी प्रकार, और उससे ज्यादा भी, दूसरों की भी सेवा करनी चाहिए। सेवा आपसी व्यवहार का ज़रिया है। यह असली रिश्ते का स्वर्णिम नियम है।

बाइबिल की किताब मत्ती के अनुसार सुसमाचार (25.41) में ईसा ने कहा, ‘‘आपने अपने भाइयों व बहनों के लिए, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, जो कुछ किया, वह तुम ने मेरे लिए ही किया है’’। परार्थ सेवा परमार्थ सेवा के बराबर है। याने, इन्सान के लिए की गयी सेवा और ईश्वर की सेवा में कोई फर्क नहीं है। सेवा का मूल्य इस दुनिया में खत्म नहीं होता है। वह एक अलौकिक गुण है। वह खुदा की ही साधना है। यह भी जीवन का स्वर्णिम नियम है।  

बाइबिल की किताब मत्ती के अनुसार सुसमाचार (25.31-46) में ईसा ने इन्सान की ज़िंदगी पर आखिरी फैसला सुनाया है। भूखों को खिलाना, प्यासों को पिलाना, बीमारों का इलाज करना व उनसे मिलना, जिन्हें कपड़े की ज़रुरत है, उन्हें कपड़े देना, बेघरों को घर दिलाना, लाचारों का सहारा बनना, कैदियों को रिहा करना, गुलामों को आज़ाद करना, आदि सेवाओं के ज़रिये दूजों के लिए खुद ‘खुश खबरी’ बनने से ही ज़िंदगी का खुदाई मकसद पूरा होता है। यही ज़मीनी स्तर पर इन्सानी सेवा के तरह-तरह के ज़रिये हैं और इसी से ज़िंदगी सार्थक होती है।

निचौड़ में कहा जाय, सेवा का भीतरी तत्व प्यार है, प्यार का बाहरी रूप सेवा भी। सेवा ही इन्सानी ज़िंदगी का ज़रिया है। सेवा से ही इन्सान-इन्सान में आपसी रिश्ता कायम होता है। सेवा से ही इन्सान की ज़िंदगी पग-पग चलती है। असल में, खोखले कर्मकाण्ड से नहीं, इन्सान की प्यार-भरी सेवा से ईश्वर की साधना होती है। सेवा ही जीवन की राह है।

साथ ही, सेवा का कोई धर्म नहीं है, बल्कि सेवा सबका धर्म है। सेवा से इन्सानियत और ईश्वर के साथ-साथ अपनी ज़िंदगी को भी एक साथ साधा जाता है। सेवा में ‘जीवन की गुरुता’ छिपी रहती है। ईसा की ज़िंदगी व तालीम की मिसाल में यही गुरुता चरम रूप से दिखाई देती है। सेवा के आदर्श पर जी-जान से अमल हो, यही सार्थक ज़िंदगी जीने का सलीका है। सेवा ही जीवन की ‘गुरुता’ हासिल करने का खास मंत्र भी है।  

सेवा गुरुवार 2023’ के पुनीत मौके पर ऐसा संकल्प हो कि सेवा की परम मूर्ति ईसा मसीह की गुरुता से प्रेरणा लेकर इन्सान-इन्सान की सेवा में मौज़ूद ईश्वरीय चेतना को पहचान सके। साथ ही, एक-दूजे की विनम्र सेवा के ज़रिये इन्सान अपनी-अपनी जि़ंदगी को सार्थक कर इन्सानियत व ईश्वरता को एक साथ साध ले तथा बेहतर देश व सामज को तामीर करने में कामयाब हो जाये। सेवा गुरुवार की सदैव जय हो।

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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़​, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, सामाजिक नैतिकता, सांप्रदायिक सद्भाव, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।

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